hindisamay head


अ+ अ-

कविता

चीखो दोस्त

प्रतिभा कटियार


चीखो दोस्त
कि इन हालात में
चुप रहना गुनाह है
चुप भी रहो दोस्त
कि लड़ने के वक्त में
महज बात करना गुनाह है
फट जाने दो गले की नसें
अपनी चीख से
कि जीने की आखिरी उम्मीद भी
जब उधड़ रही हो
तब गले की इन नसों का
साबुत बच जाना गुनाह है
चलो दोस्त
कि सफर लंबा है बहुत
ठहरना गुनाह है
कहीं नहीं जाते जो रास्ते
उनपे बेबस दौड़ते जाना
गुनाह है
हँसो दोस्त
उन निरंकुश होती सत्ताओं पर
उन रेशमी अल्फाजों पर
जो अपनी घेरेबंदी में घेरकर, गुमराह करके
हमारे ही हाथों हमारी तकदीरों पर
लगवा देते हैं ताले
कि उनकी कोशिशों पर
निर्विकार रहना गुनाह है
रो लो दोस्त कि
बेवजह जिंदगी से महरूम कर दिए गए लोगों के
लिए न रोना गुनाह है
मर जाओ दोस्त कि
तुम्हारे जीने से
जब फर्क ही न पड़ता हो दुनिया को
तो जीना गुनाह है
जियो दोस्त कि
बिना कुछ किए
यूँ ही
मर जाना गुनाह है...


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में प्रतिभा कटियार की रचनाएँ